जहांगीरपुर। ।भारत पुष्प/मनोज कुमार । श्री धाम वृंदावन से पधारे पूज्य संत श्री विष्णु दास जी महाराज ने द्वितीय दिवस की कथा श्रवण कराते हुए बताया कि श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा सर्व सुलभ कैसे हुई । जब व्यास जी ने वेदों के चार भाग कर लिए, छहों शास्त्रों को रच दिया , सत्रह पुराण लिख लिए फिर भी उन्हें शांति की प्राप्ति नहीं हो रही थी तो अपने शम्याप्रास आश्रम में चिंतातुर बैठे थे । तभी वहां देवर्षि नारद वीणा पर नारायण नारायण का कीर्तन करते हुए पधारे और उन्हें भगवान श्री कृष्ण की लीला श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना करने के लिए सूत्र प्रदान किया । इस प्रकार व्यास जी ने इस वैदिक संहिता की रचना की । यह भागवत वेद रूपी वृक्ष का पका हुआ फल है जो डाली प्रति डाली धरती तक पहुंची है। सर्वप्रथम भगवान नारायण ने ब्रह्मा जी को, ब्रह्मा जी ने नारद जी को, नारद जी ने व्यास जी को, व्यास जी ने शुकदेव मुनि को, शुकदेव जी ने परीक्षित जी को और अन्य सूत आदि ऋषियों को प्रदान किया । यह भागवत अनादि ग्रन्थ है जो कि भगवान श्री कृष्ण का ही वाङ्मय प्रतिरूप है।