-उप्र जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन की शिकायत पर दरोगा किया गया निलंबित

-मोहनलाल गंज कोतवाली क्षेत्र खुजौली चौकी इंचार्ज जसवंत सिंह किए गए निलंबित

लखनऊ। ।भारत पुष्प। मोहनलालगंज कोतवाली क्षेत्र खजौली चौकी इंचार्ज जसवंत सिंह ने पत्रकार विकास सिंह के साथ खुलेआम गुंडागर्दी कर मारा पीटा तथा थाने ले जाकर अभद्रता की जिन्हें उप्र जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन उपजा की मांग पर डीसीपी साउथ ने निलंबित किया। विदित है कि कल रविवार को मोहनलाल गंज अन्तर्गत ख़ुजौली चौकी इंचार्ज यशवंत सिंह ने कवरेज करने गए पत्रकार विकास सिंह के साथ खुले आम गुंडा गर्दी कर कॉलर पकड़ कर गला दबाया इसके बाद,गाल सहित कान पर जड़ा थप्पड़ जिससे पत्रकार को गम्भीर चोट आई है पीड़ित पत्रकार के उपरोक्त मामले से संबंधित वाइरल आडियो को गंभीरता से लेते हुए  उ०प्र० जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन उपजा के प्रांतीय अध्यक्ष प्रदीप शर्मा ने तत्काल मोहनलाल गंज के पत्रकार साथियों व उपजा के सदस्यों से जानकारी लेकर डीजीपी व पुलिस कमिश्नर को अवगत कराया तथा उक्त पीड़ित पत्रकार को न्याय दिलाते हुए उपरोक्त चौकी इंचार्ज व पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। जिस पर अधिकारियों ने शीघ्र जांच कराकर कार्रवाई का आश्वासन देते हुए तत्काल मोहनलालगंज कोतवाली क्षेत्र के खजौली चौकी इंचार्ज जसवंत सिंह को डीजीपी साउथ ने दरोगा को जांच में दोषी पाया व निलंबित किया। पीड़ित पत्रकार ने स्वयं एसीपी को लिखित शिकायत पत्र दे कर कार्यवाही की माँग करते हुए उच्चस्तरीय अधिकारियों को भी मोबाइल से अवगत कराया था इसके बावजूद भी 24 घंटे बीतने के बाद में भी कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। उ०प्र० जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन उपजा ने पीड़ित पत्रकार का मेडिकल करवा कर दोषी दरोगा पर निलंबन के साथ मुकदमा पंजीकृत कर कार्यवाही की माँग की है ताकि भविष्य में कोई भी इस तरह से पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार न कर सकें। उ०प्र० जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन उपजा के प्रांतीय अध्यक्ष प्रदीप शर्मा ने कहा कि आज का पत्रकार बहुत डरा और सहमा हुआ है न तो उसकी कलम में ताकत बची और न ही मुंह में जुबान!चौथे स्तंभ की इतनी बुरी हालत तो आपातकाल के दौरान भी देखने को नहीं मिली थी अलग अलग संगठनों और अपने हितों की वजह से आज का आधुनिक पत्रकार विघटन की वजह से बहुत कमजोर हो गया है हम सभी का ईश्वर ही मालिक है! उन्होंने कहा कि पत्रकारों पर आयें दिन हो रहे हमलों के बाद भी हम लोग उन पर हो रहें हमलों कि आवाज़ उठाने के बजाये जिस तरह से गुटबंदी और संगठनबाजी देखने को मिली वह बेहद कष्टप्रद और निराशाजनक थी” खैर जो लड़ते हैं वो एक न एक दिन अपने अंजाम तक पहुंच ही जाते हैं, लेकिन जिन्होंने पहले से ही अपने हथियार डाल दिए हों उनके जीतने की संभावना भी शून्य हो जाती है…..पत्रकार साथियों से साथ आए दिन घटित होने वाली घटनाओं और रोक ने इस चौथे स्तंभ के वजूद पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है……अगर आप खुद अपनी लड़ाई नहीं लड़ सकते हैं, तो शोषित और वंजितों को आप न्याय क्या दिलवा सकेंगे? उन्होंने कहा कि हमें कोई हक़ नहीं है कि हम आदरणीय गणेशशंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बालमुकुंद गुप्त,बाबूराव विष्णुराव पराड़कर, प्रतापनरायण मिश्र, शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी और विजय सिंह पथिक जैसे दिग्गज पत्रकारों की जमात से खुद का नाम जोड़ कर उनके महान समर्पण और बलिदान का श्रेय ले!

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